*”राजुला की मुख्यधारा मे शमील होने और 12वी की परीक्षा में सफलता से मां ने जाहिर की खुशी”*
1 min readकुरखेड़ा;(नसीर हाशमी); २८मई:
नक्सली दलदल से निकली बेटी का भविष्य उज्जवल होने की खुशी मां के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। राजुला की मां सिर्फ गोंडी बोली भाषा समजती है इसलिये उस से सीधे संवाद करना मेरे लिए असंभव था, मगर अपने गोंडी भाषा मे बेटी के सफलता की खुशी जिस तरह बयान कर रही थी उस से हमें उस के शब्द तो कुछ नही समझ रहे थे, मगर मां के खुशी को बखूबी महसुस कर रहे थे. 2 दिन पूर्व ही बेटी ने मां से फोन पर बात कर बारहवी उत्तीर्ण होने की बात मां से सांझा की थी।
राजुला हिडामी मूलतः कुरखेड़ा तहसील के खेड़ेगांव ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले लावारी गांव की मूल निवासी है। आज बंदूक छोड़कर कलम हाथ लेकर उसमें जो करिश्मा कर दिखाया है वह सभी उन लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है जो सभी सुविधाएं होने के बावजूद भी कुछ खास उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाते हैं।
कुरखेड़ा से करीब 25 किलोमीटर दूर राजुला के गांव लवारी हम पहुंचे इस गांव में विकास के तौर पर पक्की सड़कें बन चुकी हैं मगर अभी भी इस गांव में सभी मकान यह कच्ची मिट्टी के ही है। हमें यह जानकारी मिली के राजुला यहां नहीं रहती उसके पिता का तीन वर्ष पूर्व देहांत हो चुका है और उसकी मां ने दूसरी शादी कर ली है वह और किसी गांव में रहती है।
राजुला के संदर्भ में जानकारी हासिल की इसमें हमें यह पता चला कि राजुला अपने मां-बाप की दूसरी संतान थी उसका एक बड़ा भाई भी है जो यही लावरी गांव में रहता है उसकी शादी हो चुकी है उसके दो बच्चे हैं और वह अपने परिवार के साथ यहां खुश है।
राजुला के चाचा से हम ने मुलाकात की वह हमें बहुत कुछ बताने से कतरा रहे थे। उन्होंने इतना बताया कि उसकी जो मां है उसकी दूसरी शादी हो चुकी है और अब वह यहां नहीं रहती और उन्हें उसका पता सीधे नही दिया उन्होंने बताया कि वह बीजापुर हो या आपको चारभट्टी इस 2 गांव में कही मिलेगी। तो हम लोग इन दोनों गांव की तरफ चलदिए। बीजापुर में जाने के बाद हमें यह पता चला कि वह बीजापुर में कुछ वर्ष पहले रहती थी। लोगों ने हमे उसका वोह मकान भी दिखाया जो काफी समय से खाली पड़ा है। यह सभी लोग राजुला को जानते है। लोगों ने हमे बताया के राजुलाकी मां ने दूसरी शादी करली है। शादी के बाद वहां से चली गई है। उसने चारभट्टी के दर्रो बोवा नामक व्यक्ति से विवाह कर लीया हैं.
हम फिर अपना सफर अगले गांव की ओर शुरू कर दिया। चारभट्टी गांव पहुंचने के बाद हमने राजुला के घर की खोजबीन कर वहा पहुंचे। राजुला की मां सिर्फ गोंडी भाषा अछिसे समझ पाती है, तो हम उस से सीधे संवाद नही कर पाए, हमारे एक सहयोगी है रमेश जो चारभट्ट गांव के ही है, इन्होंने हमे संवाद कर सहायता की, गोंडी भाषा में उसके साथ बात की है उससे पूछा कि राजुला कहां है कैसी है आत्मसमर्पण में कैसे गई तो उसने बहुत डरते डरते हैं बताया कि वह बचपन में खेत में गई थी और खेत में जाते हुए वहीं से नक्सली उसको उठा ले गए थे और उसके बाद तो वह कुछ दिन बाद लौट आई थी उसके बाद तो पुलिस के डर से हमने उसे घर में नहीं रखा बाद में वह यहां से पुलिस लेगई थी फिर आगे क्या कैसे क्यों इन सवालों के जवाब में बहुत ज्यादा कुछ हमें नहीं बता पाई।
मां को इस बात की खुशी है कि उसकी लड़की इस जंगल की दहशत से बाहर निकलकर अपनी जिंदगी की ऊंची मकाम पर पहुंच रही है और जिस तरह उसने 12वीं की परीक्षा पास की है उसे उसके बेटी ने ही फोन कर बताया था कि वह तो 12वीं पास हो चुकी है और बीच-बीच में उनसे मिलने आती रहती है मगर उन्हें डर है कि कहीं उसके जान को खतरा न हो इसके वजह से उसे वह गांव में रुकने नहीं देते. उनसे मुलाकात करके लौट जाती है।
अभी काफी दिनों से वह आई नहीं है क्योंकि उसके परीक्षाएं चल रही थी और वह कंप्यूटर सीख रही है ऐसा मुझे पता चला है तो वह कुछ दिनों में यहां उनसे मुलाकात करने आएगी ऐसा उसने उसे कहा है सबका कहना है तो यही माता जो है वह अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य को लेकर काफी खुश भी थी और चिंतित भी थी कि जिस दलदल से वह निकली है वापिस वह उसका जो बीता हुआ कल है वह कहीं उसके जिंदगी में रोडा ना बने।
*एम. ए. नसीर हाशमी,*
गड़चिरोली न्यूज नेटवर्क – GNN